हमारे धर्मग्रंथों में, गायत्री साधना के चमत्कारों के विषय में बहुत कुछ लिखा गया है। परन्तु अपने जीवन में पिछले 42 वर्षों के अध्यात्मिक जीवन में मैंने हजारों लोगों का गायत्री साधना में मार्गदर्शन किया है। स्वयं तथा दूसरों के जीवन में घटित उन्हीं चमत्कारों में से एक यहाँ दे रहा हूँ।
वर्ष 1979 के 06 मई को मुझे अपने प्रारंभिक मार्गदर्शक श्री राजेन्द्र कुमार कथूरिया जी के यहाँ, शिलोंग (मेघालय) में जहाँ मैं एयर फोर्स में कार्यरत था। गायत्री यज्ञ और विवाह दिवस संस्कार (marriage anniversary) में सम्मिलित होने का अवसर मिला।
उसके ठीक 12 दिन बाद 18 मई 1979 को मैंने अपने यहाँ गायत्री यज्ञ और पुंसवन संस्कार(जब बालक माँ के गर्भ में हो तब ये संस्कार किया जाता है) कराया। मेरे बड़े लडके अनंत देव हरिवंशी का जन्म होने वाला था।
तभी से मेरी नियमित गायत्री साधना प्रारंभ हो गयी। उसी वर्ष आश्विन नवरात्रि पर मैंने शांतिकुंज हरिद्वार जाकर परम पूज्य गुरुदेव ,वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, प० श्री राम शर्मा आचार्य जी से विधिवत गुरु दीक्षा ली।
और वहां नौ दिन में 24,000 गायत्री महामंत्र जप का अनुष्ठान संपन्न किया।
वहां से आते हुए, गोरखपुर में मेरी बड़ी बहन श्रीमती शकुन्तला देवी के यहाँ मैंने संक्षिप्त गायत्री यज्ञ करवाया।
यज्ञ में मेरी बहन,उनकी देवरानी, तथा उनकी ननद तीन लोगों ने नियमित गायत्री साधना का संकल्प लिया।

उनकी देवरानी श्रीमती सावित्री देवी की शादी को 12--13 वर्ष बीत गए थे पर कोई संतान नहीं थी।
वो और उनके पति श्री रामानंद राय जी जो कृषि पदाधिकारी के पद पर थे, गोरखपुर के सबसे बड़े डॉक्टर से दिखा कर निराश हो चुके थे। डॉक्टर ने कहा था कि उनके इलाज के लिए इंग्लैंड जाना पड़ेगा। उस समय उनके लिए यह संभव नहीं था।
गायत्री यज्ञ में माँ गायत्री और यज्ञ भगवान की महिमा को सुन कर, दीक्षा लेकर उन्होंने श्रद्धा निष्ठा पूर्वक, नित्य नियमित प्रातःकाल 5 माला गायत्री महामंत्र का जप प्रारंभ कर दिया।
एक वर्ष के भीतर ही, उन्हें एक सुंदर , तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई।
जिसका नामकरण संस्कार कर उसका नाम धनंजय रखा गया। जो इस समय बैंगलोर में एक बड़ी कम्पनी में कम्प्यूटर इंजिनियर के पद पर कार्यरत है।
श्रीमती सावित्री देवी के बाद में एक और पुत्र तथा एक पुत्री माँ गायत्री के आशीर्वाद से प्राप्त हुई।
सच्चे मन से की गयी, किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती।