top of page

4) रामचरित मानस का एक दुर्लभ सन्देश भाग(4):--
****************************
यदि हमारा जीवन गणित के एक प्रश्न के समान है तो उसे हल करने का सूत्र (formula)  क्या है ???
***********************
इसका उत्तर है कि हम दशरथ बनें, दशानन नहीं।
*********************
हम दशरथ जी की तरह अपने जीवन की गतिविधियों के सञ्चालन में, जीवनी शक्ति का आधा भाग अन्तःप्रेरणा के लिए (आत्मिक विकास के लिए) लगायें।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
अधिक से अधिक शेयर करें। 
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
आलेख :-- महर्षि ' श्रद्धानंद '
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
संस्थापक,संचालक :--
आनंद गायत्री योग साधना (ऑनलाइन प्रशिक्षण )
श्री सत्य सनातन धर्म परिवार
सिद्धपीठ, गायत्री शक्तिपीठ शांतिधाम, छपरा, बिहार
7857937020
**********
1/4 भाग व्यावहारिक जीवन में बुद्धि के विकास में लगायें। 
*********
और शेष 1/4 भाग  आत्मिक और बौद्धिक विचारों के मार्ग दर्शन में शारीरिक विकास में लगायें।
********
यदि इस अनुपात में जीवन की गतिविधियों का सञ्चालन नहीं होता तो --
******
हम जाने अनजाने दशानन(रावण) के मार्ग पर चलकर अंततः इस सुर दुर्लभ मानव जीवन का विनाश कर लेते हैं।
विशेष जानकारी के लिए पिछले (3) संदेशों को पढ़ें।
********
अब प्रश्न ये उठा ! कि जब दशरथ दस इन्द्रियों रूपी रथ में सवार जीवात्मा हैं। 
************
     और इस जीवात्मा के तीन शरीर स्थूल, सूक्ष्म, और कारण शरीर ही उनकी सुमित्रा, कैकेयी, कौशल्या आदि रानियाँ हैं। 
**********
     तो उनके चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न हुए। तो क्या साधना मार्ग पर, श्री सत्य सनातन धर्म के मार्ग पर हम भी यदि दशरथ जी के समान चलें , तो क्या हमारे जीवन में भी राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न जी आयेंगे???????
*********
इसका उत्तर है कि हाँ !!!!!!!!
आप के जीवन में भी दशरथ जी की तरह
राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न आ सकते हैं।
***********************
कैसे ?????
*****
जब आप भी श्री सत्य सनातन धर्म के सिद्धांतों के अनुसार:---
(1) वर्णाश्रम धर्म का पालन करेंगे !
***************
वर्ण व्यवस्था ! ईश्वरीय व्यवस्था है ।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ।
*****
यह मनुष्य की प्रकृति और स्वभाव के अनुसार वर्गीकरण है। जन्म के आधार पर ,  जाति के आधार पर नहीं।
********
भगवान् कृष्ण ने गीता में कहा है:--
चातुर्वर्ण्यम मया सृष्टयम गुण कर्म विभागशः ।

अर्थात प्रकृति और स्वभाव के अनुरूप मैंने ही चार वर्णों की रचना की है।

 इस प्रकार मनुष्य को अपनी प्रकृति, स्वभाव को पहचान कर तदनुकूल कार्य करना चाहिए।
********
चार आश्रम :-- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ।

मनुष्य की आयु 100 वर्ष मानी गयी है। 
ब्रह्मचर्य आश्रम:--
पहले 25 वर्ष की आयु  में  गायत्री साधना, यज्ञ, धर्म, दर्शन, गणित आदि विषयों का गुरु सान्निध्य में अध्ययन करते हुए। शारीरिक, मानसिक, आत्मिक विकास में अग्रसर होना।
***
गृहस्थ आश्रम:--
**** 25--50 वर्ष, गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर धर्म पूर्वक पारिवारिक उत्तरदायित्वों का पालन करना।

वानप्रस्थ आश्रम:--
***********
गृहस्थ जीवन के दायित्वों से मुक्त होकर अधिक से अधिक समय, अपने ज्ञान, विद्या, बुद्धि, सम्पदा का उपयोग समाज निर्माण में लगाना।
संन्यास आश्रम:--
*********
75 वर्ष के बाद शेष आयु जब शरीर और इन्द्रियां अशक्त होने लगते हैं। तो ईश्वर के जप,ध्यान, पूजन, स्वाध्याय, चिंतन, मनन आदि में व्यतीत करते हुए अगले जन्म की तैयारी करना।
अर्थात उम्र के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्धारण कर उसका पालन करना।
(2)चार पुरुषार्थ:-- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-
***********
ये सुर दुर्लभ मानव जीवन चार पुरुषार्थ के लिए मिला है। सबसे पहले धर्म को जानें और पालन करें। 
धर्मानुकूल धन भी कमायें ।
संयमित रूप से जीवन का आनंद लेने के लिए संगीत, नृत्य आदि मनोरंजन के साधनों का भी उपयोग करें।
उस परमात्मा को भी रसो वै सः अर्थात वह परमात्मा रसमय है यह कहा गया है।
और अंत में इस सुर दुर्लभ मानव जीवन को पाकर मोक्ष के लिए, अपनी मुक्ति के लिए भी प्रयास करना है।
*****
(3)आत्मिक विकास:--
अपने आत्मिक विकास के लिए नियमित रूप से सम्पूर्ण जीवन में साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा के सिद्धांतों को अपना कर आत्मिक विकास के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना है।
*********
श्री सत्य सनातन धर्म के इन सिद्धांतों का दशरथ जी की तरह जीवन में पालन करने से, चार बलों की प्राप्ति होती है।

**********
यह धरती वीरों के लिए है, कायरों केलिए नहीं।
-- वीर भोग्या वसुंधरा
--survival of the fittest.
इस पृथ्वी पर कमजोरों को जीने का अधिकार नहीं। यह प्रकृति की व्यवस्था है। 
आज हिन्दू समाज श्री सत्य सनातन धर्म के इन सिद्धांतों की उपेक्षा अवहेलना के कारण ही अपनी मातृभूमि में भी उपेक्षित हो गया है।
*********
श्री सत्य सनातन धर्म के इन सिद्धांतों का पालन करने से:-
***********************
हमें चार बल प्राप्त होते हैं
(1)शरीर बल--शत्रुघ्न
(2)मनोबल--- लक्ष्मण
(3) आत्मबल-- भरत
(4) ब्रह्म बल-- राम
****
आइये हम श्री सत्य सनातन धर्म के सिद्धांतों का पालन कर अपने सुर दुर्लभ मानव जीवन को सार्थक करें। देश, धर्म, संस्कृति का मान बढायें।
*******
युग ऋषि वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ प० श्रीराम शर्मा ' आचार्य ' जी की तरह विश्व में भारत माता के गौरव को पुनः स्थापित करें।
**********
जय माँ आदिशक्ति गायत्री, जय श्री राम, जय सनातन धर्म।
*****
*************
अधिक से अधिक शेयर करें। 
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
आलेख :-- महर्षि ' श्रद्धानंद '
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
संस्थापक,संचालक :--
आनंद गायत्री योग साधना (ऑनलाइन प्रशिक्षण )
श्री सत्य सनातन धर्म परिवार
सिद्धपीठ, गायत्री शक्तिपीठ शांतिधाम, छपरा, बिहार
7857937020

yoga.jpg
srirama-2.jpg
bottom of page